गुप्तकाल की अर्थव्यवस्था
कृषि
- गुप्तकाल की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि था।
भूमि के प्रकार
- वास्तु भूमि – वास करने योग्य
- अप्रहत – बिना जोती गयी भूमि
- सदबल भूमि – घास मैदान वाली
- औदिक – दलदल भूमि
- राजस्व – भू राजस्व ही राज्य की आय का मुख्य साधन था। भू राजस्व कुल आय का 1/6 हिस्सा होता था।
विभिन्न प्रकार के कर
- धान्य – अनाज में राजा का हिस्सा
- भट्टकर – पुलिस कर
- चाट – लुटेरों से बचाने के लिए कर
- प्रणय – अनिवार्य कर
- विष्टि – बेगार कर
- शुल्क – सीमा कर या बिक्री कर
- बलि – यह एक धार्मिक कर था।
- उपरि कर – यह उन रैयतों पर लगाया जताा था जो भूमि के स्वामी नहीं थे।
- भू राजस्व नकद तथा अनाज दोनों के रूप में वसूला जाता था।
- हिरण्य सामुदायिक – नकद भू राजस्व वसूलने वाले।
- औदरांगिक – अनाज के रूप में भू राजस्व वसूलने वाले।
गुप्तकालीन व्यापार
- रोमन व्यापार का पतन
- द. पू. एशिया एवं चीन के साथ व्यापार में वृद्धि
- आंतरिक व्यापार में कमी
- गुप्तकालीन समाज
- गुप्तकालीन समाज की विशेषताएं
- गुप्तकालीन समाज ब्राह्मणवादी था
- विभिन्न पेशेवर समूहों का जाति में ढलना
- पुनरूत्थान के कारण उच्चवर्णो के विशेषाधिकारों का बल
- वैश्यों की सामाजिक दशा में तुलनात्मक रूप में गिरावट
- शूद्रों की सामाजिक दशा में सुधार
दास प्रथा
- इस काल में दास प्रथा प्रचलित थी।
- इस काल में दासों को मुख्यतः घरेलू कार्यो में लगाया जाता था।
- कारण – जनजातियों के आत्मसातीकरण के कारण श्रमिकों की पूर्ति, शूद्रों को कृषि कार्यो में लगाया जाना एवं भूमि दानों द्वारा दास प्रथा को कमजोर कर देना।
- स्त्रियों की दशा
- स्त्रियों की सामाजिक दशा में तुलनात्मक रूप से गिरावट आयी।
- पर्दा प्रथा का प्रचलन हो चुका था।
- बाल विवाह प्रथा एवं बहु विवाह प्रथा व्याप्त हो चुकी थी।
- सती प्रथा का साक्ष्य एरण अभिलेख से प्राप्त हुआ है।
- देवदासी प्रथा द्वारा मंदिर के पुजारियों द्वारा यौन शोषण बढ़ गया था।
- गणिकाओं एवं वैश्यावृति में वृद्धि हुई।
कुछ सकारात्मक परिवर्तन
- स्त्रियों को सम्पत्ति संबंधि अधिकार दिए गए।
- पत्नि एवं पुत्रियों को सम्पति का उत्तराधिकारी बनाया गया।
- स्त्रियां प्राकृत भाषा का प्रयोग कर सकती थी।
गुप्तकाल में धार्मिक स्थिति
- गुप्तकालीन धार्मिक व्यवस्था का मुख्य लक्षण – जटिलता एवं विविधता है।
- एक ओर ब्राह्मणवादी पुनरूत्थान के कारण यहां यज्ञ की पद्धति पुनर्जीवित हो रही थी वहीं जनजातीय तत्वों के प्रभावस्वरूप भक्ति की अवधारणा को प्रोत्साहन मिल रहा था।
- मंदिरों एवं मूर्तियों का निर्माण हुआ।
- अवतार वाद की अवधारणा का उदय।
- ब्राह्मण धर्म के अन्तर्गत वैष्णव एवं शैव भक्ति का विकास।
- नव हिन्दु धर्म की शुरूआत इसी काल में हुई।
- वैष्णव धर्म सबसे प्रधान बन गया। शैव सम्प्रदाय को भी संरक्षण मिला।
भगवान हरिहर की मूर्ति
- यह शैव एवं वैष्णव धर्म के समन्वय को दर्शाती है।
- देवताओं के साथ देवियों को इसी काल में जोड़ा गया।
- त्रिदेव(ब्रह्मा, विष्णु, महेश) की संकल्पना इसी काल में विकसित हुई।
- ब्राह्मणवाद के उत्थान के कारण धार्मिक कर्मकाण्डों में पुनः वृद्धि हुई।
- मूर्ति पूजा का प्रभाव एवं भक्ति का प्रभाव बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म पर भी पड़ा तथा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी मूर्ति बनना शुरू हुआ।
- मन्दिरों का निर्माण, भक्ति, कर्मकाण्ड, मूर्तिपूजा इस काल की प्रमुख विशेषता थी।
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