गुप्तकाल | History Notes by Mukesh Sir | Part 4

गुप्तकाल की अर्थव्यवस्था

कृषि

  • गुप्तकाल की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि था।

भूमि के प्रकार

  • वास्तु भूमि – वास करने योग्य
  • अप्रहत – बिना जोती गयी भूमि
  • सदबल भूमि – घास मैदान वाली
  • औदिक – दलदल भूमि
  • राजस्व – भू राजस्व ही राज्य की आय का मुख्य साधन था। भू राजस्व कुल आय का 1/6 हिस्सा होता था।

विभिन्न प्रकार के कर

  • धान्य – अनाज में राजा का हिस्सा
  • भट्टकर – पुलिस कर
  • चाट – लुटेरों से बचाने के लिए कर
  • प्रणय – अनिवार्य कर
  • विष्टि – बेगार कर
  • शुल्क – सीमा कर या बिक्री कर
  • बलि – यह एक धार्मिक कर था।
  • उपरि कर – यह उन रैयतों पर लगाया जताा था जो भूमि के स्वामी नहीं थे।
  • भू राजस्व नकद तथा अनाज दोनों के रूप में वसूला जाता था।
  • हिरण्य सामुदायिक – नकद भू राजस्व वसूलने वाले।
  • औदरांगिक – अनाज के रूप में भू राजस्व वसूलने वाले।

गुप्तकालीन व्यापार

  • रोमन व्यापार का पतन
  • द. पू. एशिया एवं चीन के साथ व्यापार में वृद्धि
  • आंतरिक व्यापार में कमी
  • गुप्तकालीन समाज
    • गुप्तकालीन समाज की विशेषताएं
    • गुप्तकालीन समाज ब्राह्मणवादी था
  • विभिन्न पेशेवर समूहों का जाति में ढलना
  • पुनरूत्थान के कारण उच्चवर्णो के विशेषाधिकारों का बल
  • वैश्यों की सामाजिक दशा में तुलनात्मक रूप में गिरावट
  • शूद्रों की सामाजिक दशा में सुधार

दास प्रथा

  • इस काल में दास प्रथा प्रचलित थी।
  • इस काल में दासों को मुख्यतः घरेलू कार्यो में लगाया जाता था।
  • कारण – जनजातियों के आत्मसातीकरण के कारण श्रमिकों की पूर्ति, शूद्रों को कृषि कार्यो में लगाया जाना एवं भूमि दानों द्वारा दास प्रथा को कमजोर कर देना।
  • स्त्रियों की दशा
    • स्त्रियों की सामाजिक दशा में तुलनात्मक रूप से गिरावट आयी।
    • पर्दा प्रथा का प्रचलन हो चुका था।
  • बाल विवाह प्रथा एवं बहु विवाह प्रथा व्याप्त हो चुकी थी।
  • सती प्रथा का साक्ष्य एरण अभिलेख से प्राप्त हुआ है।
  • देवदासी प्रथा द्वारा मंदिर के पुजारियों द्वारा यौन शोषण बढ़ गया था।
  • गणिकाओं एवं वैश्यावृति में वृद्धि हुई।

कुछ सकारात्मक परिवर्तन

  • स्त्रियों को सम्पत्ति संबंधि अधिकार दिए गए।
  • पत्नि एवं पुत्रियों को सम्पति का उत्तराधिकारी बनाया गया।
  • स्त्रियां प्राकृत भाषा का प्रयोग कर सकती थी।

गुप्तकाल में धार्मिक स्थिति

  • गुप्तकालीन धार्मिक व्यवस्था का मुख्य लक्षण – जटिलता एवं विविधता है।
  • एक ओर ब्राह्मणवादी पुनरूत्थान के कारण यहां यज्ञ की पद्धति पुनर्जीवित हो रही थी वहीं जनजातीय तत्वों के प्रभावस्वरूप भक्ति की अवधारणा को प्रोत्साहन मिल रहा था।
  • मंदिरों एवं मूर्तियों का निर्माण हुआ।
  • अवतार वाद की अवधारणा का उदय।
  • ब्राह्मण धर्म के अन्तर्गत वैष्णव एवं शैव भक्ति का विकास।
  • नव हिन्दु धर्म की शुरूआत इसी काल में हुई।
  • वैष्णव धर्म सबसे प्रधान बन गया। शैव सम्प्रदाय को भी संरक्षण मिला।

भगवान हरिहर की मूर्ति

  • यह शैव एवं वैष्णव धर्म के समन्वय को दर्शाती है।
  • देवताओं के साथ देवियों को इसी काल में जोड़ा गया।
  • त्रिदेव(ब्रह्मा, विष्णु, महेश) की संकल्पना इसी काल में विकसित हुई।
  • ब्राह्मणवाद के उत्थान के कारण धार्मिक कर्मकाण्डों में पुनः वृद्धि हुई।
  • मूर्ति पूजा का प्रभाव एवं भक्ति का प्रभाव बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म पर भी पड़ा तथा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी मूर्ति बनना शुरू हुआ।
  • मन्दिरों का निर्माण, भक्ति, कर्मकाण्ड, मूर्तिपूजा इस काल की प्रमुख विशेषता थी।

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