समुद्रगुप्त(335ई. – 380ई.)
- समुद्रगुप्त को विसेट स्मिथ ने अपनी पुस्तक अर्ली हिस्ट्री आॅफ इण्डिया में भारत का नेपोलियन कहा है।
- उपाधियां – पराक्रमांक, अप्रतिरथ एवं व्याघ्रपराक्रम।
- समुद्रगुप्त का विजय अभियान(5 चरण)
- प्रथम चरण – अहिच्छत्र, चम्पावती एवं विदिशा सहित उत्तर भारत के 9 राज्य। यह आर्यावर्त राज्य प्रसभोद्वरण कहलाया।
- द्वितीय चरण – पंजाब, सीमावर्ती राज्य एवं नेपाल।
- तृतीय चरण – विंध्यक्षेत्र पर विजय।
- चतुर्थ चरण – पल्लव, कोसल, कोट्टूर, महाकान्तर, कांची, वेंगी आदि सहित कुल 12 राज्यों पर विजय प्राप्त की। दक्षिण भारत पर यह विजय धर्म विजय कहलायी।
- पांचवां चरण – उत्तर पश्चिम भारत के कुछ विदेशी राज्यों पर विजय।
- विजय अभियान को पूरा करने के बाद अश्वमेधयज्ञ करवाया एवं अश्वमेध पराक्रम की उपाधि ली।
- समुद्रगुप्त को उसके सिक्कों पर वीणा बजाते हुए दिखाया गया है।
- समुद्र गुप्त को कविराज की उपाधि प्रदान की गयी है।
रामगुप्त प्रकरण
- गुप्त शासकों के रूप में रामगुप्त का नाम देवीचन्द्रगुप्तम, हर्षचरित, काव्यमीमांशा आदि ग्रंथों से प्राप्त होता है।
- यह समुद्रगुप्त के पश्चात् गद्दी पर बैठा परन्तु यह कायर शासक था।
- इसके समय में शक आक्रमण बढ़ गए थे जिसे इसने अपनी पत्नी ध्रुवदेवी को शाकाधिपति के लिए सौंपकर राज्य में शांति बहाल करने की कोशिश की। परन्तु रामगुप्त के छोटे भाई चन्द्रगुप्त द्वितीय को इस बात की भनक लग गयी तथा स्त्री के वेश में ध्रुवदेवी के स्थान पर शक शिविर में गया तथा मौका पाकर शकाधिपति की हत्या कर दी।
- इसके बाद इसने अपने कायर भाई की भी हत्या कर दी तथा स्वंय गद्दी पर बैठा एवं ध्रुवदेवी से विवाह कर लिया।
चन्द्रगुप्त द्वितीय
- उपाधियां – विक्रमांक, विक्रमादित्य, परमभागवत।
- अन्य नाम – देवगुप्त, देवराज, देवश्री।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल में गुप्त साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय का साम्राज्य पश्चिम में गुजरात से पूर्व में बंगाल तक एवं उत्तर में हिमालय से लेकर नर्मदा नदी तक था।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय ने शक क्षत्रप रूद्रसिंह-3 को पराजित किया इस उपलक्ष में व्याघ्र शैली के चांदी के सिक्के चलाए एवं शकारि की उपाधि धारण की।
- गुप्तकाल में चांदी के सिक्के चलाने वाला प्रथम शासक यही था।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय ने ही विक्रम संवत् की स्थापना की।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल में चीनी यात्री फाह्यान आया था।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय का शासन काल कला एवं साहित्य का स्वर्णकाल माना जाता है।
चन्द्रगुप्त द्वितीय के राजदरबार में 9 रत्न थे। नो रत्न –
1. धन्वन्तरी – चिकित्सा क्षेत्र 4. वाराहमिहिर – खगोल शास्त्री 7. वररूचि – संस्कृत व्याकरण
2. घाटखर्पर – कवि 5. अमरसिंह 8. वेतालभट्ट – मन्त्रशास्त्र
3. कालिदास – लेखक 6. कक्षपनक – ज्योतिष 9. शंकु – शिल्प शास्त्र
कुमारगुप्त
- कुमारगुप्त, चन्द्रगुप्त द्वितीय का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था।
- उपाधि – महेन्द्रादित्य, श्री महेन्द्र, गुप्तकुल व्योमशशि, अश्वेमेध महेन्द्र।
- कुमार गुप्त की मुद्राओं पर गरूड के स्थान पर मयूर आकृति अंकित है।
- कुमारगुप्त प्रथम के शासन में नालंदा विश्वविधालय की स्थापना करवायी।
- कुमारगुप्त के सिक्कों पर कार्तिकेयन का अंकन मिलता है।
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